ओपिनियन पोल पर रोक लगाने की माँग करने वाले केवल अपराधी ही
नहीं हैं बल्कि वे प्रजा तंत्र की मूल
जड़ों पर प्रहार करने वाले भी हैं.चार्वाकों ने वेदों का विरोध किया,बुद्ध ने
संसार को बनाने वाले ईश्वर को ही मानने से इन्कार कर दिया,तो हिन्दुओं ने
इन सभी को मार तो नहीं दिया,बल्कि उन्हें बोलने की पूरी आज़ादी दी.यदि कोई समाचार
पत्र या चैनल ओपिनियन पोल करवा कर ये कहे कि
शरद पवार की राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी या फारूख अब्दुल्ला की नेशनल कांफ्रेंस केवल अपने
बलबूते पर आगामी लोकसभा चुनाव में भारी बहुमत से जीत कर सरकार बनाएगी तो
आम जनता उसे मानने से इन्कार कर देगी.जनता
इन समाचार पत्रों और चैनलों से दूर हो जाएगी और उनका भट्ठा बैठा देगी,जिस प्रकार केबल चैनल देखने वालों में “दूरदर्शन”का बैठा
हुआ है.”दूरदर्शन”का दर्शन वे “दूर से दर्शन”ही करते हैं.
संसार के अधिकांश प्रजातांत्रिक देशों में इस प्रकार के ओपिनियन पोल होते हैं तो
इसमे कौन सी बुराई आ गई की भारत में ओपिनियन पोल रोक दिए
जाएँ.रही बात की ये पोल
कोई भी पैसे देकर करवा सकता है,ऐसा कहने वाले भी गलत हैं.ये समाचार पत्र और
चैनल तो पैसा लेकर भी ये नहीं बताते कि गोधरा
में साबरमती एक्सप्रेस
में कार सेवकों को आग से जला कर मारने वाले किस धर्म और किस पार्टी के
थे.वे पैसा लेकर ये भी नहीं बताएगें कि
मुज़फ्फर नगर में जिस लड़की के साथ बदतमीज़ी हुई वह किस धर्म की थी और बदतमीज़ी करने वाले
किस धर्म और पार्टी के थे.
ओपिनियन
पोल पर रोक लगाने की माँग करने के बजाय यदि वे लोग महंगाई,भेद
भाव,भ्रष्टाचार,आतंकवाद पर रोक लगाने का काम करते तो यह प्रजातंत्र के लिए ज्यादा
बेहतर होता.
No comments:
Post a Comment