Saturday, March 15, 2014

अन्ना हजारे के क्रांति की मशाल बुझ चुकी है.

अन्ना हजारे गाँव से पूना,पूना से दिल्ली पहुंच कर महाराष्ट्र सदन में ठहरते है, और कम भीड़ होने के कारण बीमारी का बहाना करते हुए रैली में जाने से इन्कार कर देते हैं.मेरा नाम नहीं लेना,मेरी फोटो नहीं लगाना,जो करना है अपने दम पर करना जैसी बातें करने वाले अन्ना का घमंड कम भीड़ होने के कारण टूट गया.क्या शादी में कम भीड़ होने से कोई दूल्हा शादी करने से इन्कार कर देता है?उनका जादू आदमियों के बदले कुर्सियों के सर चढ़ कर बोल रहा था,ढेर सारी खाली कुर्सियाँ उन्हें सुनने को मौजूद थीं.
पलटी मारना केजरीवाल से कोई सीखे,मगर अन्ना हजारे पलटी मारने में भी केजरीवाल के गुरु हैं,गांधीवादी होने के बावजूद उन्होंने झूठ कहा की मेरी तबीयत ख़राब है.बाद में कहा कि मेरा समर्थन ममता को है,T.M.C.को नहीं.इससे पहले कहते थे कि मैं राजनीति में नहीं आऊंगा मगर राजनीतिज्ञ ममता से हाथ मिलाया,शायद इसे ही गुड़ खाकर गुलगुले से परहेज़ करना कहते होंगे.
व्यक्ति के विचारों का जब उसके कर्म से मेल होता है,तभी उसका महत्व होता है,केवल व्यक्ति या केवल विचार का कोई महत्व नहीं होता.अन्ना को याद रखना चाहिए कि काठ की हाँड़ी बार बार चुल्हे पर नहीं चढ़ती.उनके क्रांति की मशाल बूझ चुकी है,केवल धूँआ और राख ही उनके हाथ लगेगा.