Saturday, December 7, 2013

अपनी नाकामियों को छिपाने के लिए कांग्रेस साम्प्रदायिक हिंसा बिल लाई है.

साम्प्रदायिक हिंसा विरोधी बिल और कुछ नहीं,सिर्फ अपनी नाकामियों को छिपाते हुए वोटो का ध्रुवीकरण अपनी तरफ करने की कोशिश है.
आज से 25 -30 साल पहले जितने दंगे होते थे,उतने दंगे पिछले 10 -12 सालों से नही हो रहे हैं.सरकारी समाजवाद लाने की कोशिसों ने 1991 ईस्वी तक देश को ही दिवालिया होने के कगार पर नही पहुंचाया,लोगों को बेरोजगारी के चरम शिखर तक भी पहुँचा दिया था.खाली दिमाग शैतान का घर होता है,यही खाली दिमाग वाले लोग दंगा करते हैं.
1991 ईस्वी के बाद सरकारी तंत्र को थोड़ा ढीला किया गया,जिसका नतीजा ये हुआ की रोजगार कार्यालयों में भीड़ कम हुई और लोगों को निजी क्षेत्रों में काम मिलने लगा और दंगों में भारी गिरावट हुई.गुजरात में पिछले 10 सालों में यदि कोई दंगा नही हुआ तो उसका कारण है वहाँ की समृद्धि और सख्त कानून व्यवस्था.
बहुत ज्यादा टैक्स बढाने से गरीबी बढ़ती है,जो दंगे का सबसे बड़ा वजह बन जाती है.आजादी के बाद देश के पहले बजट में जनता से 200 करोड़ रूपये का भी टैक्स नही लिया गया था जबकि पिछला बजट लगभग 17 लाख करोड़ रुपये का था.यदि चार आदमियों का एक परिवार होता है,तो प्रति परिवार देश के पहले बजट में 30 रुपया टैक्स देना पडा जबकि पिछले बजट में ये रकम बढ़ कर 56000 रूपये तक पहुँच गयी.टैक्स से प्राप्त अधिकांश पैसे सरकारी खर्चों और भ्रष्टाचार में खत्म हो जाते हैं.आम जनता तक बहुत कम पैसे पहुँचते हैं जिससे उसकी गरीबी बढ़ती है और दंगे पनपते हैं.
यदि टैक्स कम करके सख्त कानून लागू किये जाएँ तो दंगे नही होंगे और किसी साम्प्रदायिक हिंसा विरोधी बिल की आवश्यकता नही होगी.

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